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पून
श्री नितीनजी घीसूलालजी हिंगड , मुम्बई / जापान
बचपन में हम `सिंदबाद की सफ़र' के साहसपूर्ण कारनामे पढा करते थे , इससे कुछ मिलती - जुलती सत्य घटना नितीन हिंगड के जीवन की है. सात समन्दर पार उगते सूरज के देश जापान में नितीन हिंगड एक हीरे की कम्पनी में सर्विस हेतु गये... लेकिन विधी का विधान कुछ और ही था. हीरे की जिस कंपनी में ये सर्विस कर रहे थे , उन्होंने अपना जापान का कारोबार अचानक बंद कर दिया. पराया देश... ऊपर आकाश और नीचे धरती... ऐसी परिस्थिती में एक सामान्य व्यक्ति क्या निर्णय करता? चुपचाप अपने वतन लौटकर खानदानी कारोबार में जुट जाता ! लेकिन यह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं था , यह तो नितीन हिंगड था...अग्निपरीक्षा से गुजर चुका सोना था.

इन्होंने एक हिम्मतभरा निर्णय किया.... जापान में ही रहकर अपना कारोबार शुरु करना ! वैसे भी इनकी पैनी नजर फुड प्रॉडक्ट्स के बिजनेस में मिलनेवाली मलाई पर गडी हुई थी. लेकिन जापान जैसे धनी देश में बिना पूंजी के कोई भी व्यापार करना खाने का काम नहीं था , चाहे वह खाने-पीने के सामान का ही क्यों न हो !

इन्होंने मार्केट का अध्ययन किया... बम्बई आकर पूंजी लगानेवालों से बातचीत की.. अपनों का साथ मिला... और अपने सपने को अंजाम देते हुए इन्होंने जापान में अम्बिका ट्रेडिंग कम्पनी की स्थापना की. मेहनत , लगन और बुद्धि के बल पर इन्होंने अपने फुड प्रॉडक्ट्स के बिजनेस को दिन दूना और रात चौगुना बढाया. आज जापान की धरती पर अम्बिका ट्रेडिंग कम्पनी की खुद की पांच मंजिला इमारत इनके पुरुषार्थ की गवाही दे रही है. साथ ही नौजवानों को प्रेरणा भी दे रही है, कि इतनी कम उम्र में एक व्यक्ति अपनी लगन और परिश्रम के बल पर कितनी उंचाई हासिल कर सकता है.

अक्सर विदेश की धरती पर सफल होनेवाले लोग अपनी जन्मभूमि को - अपने लोगों को भूल जाया करते हैं. लेकिन इस मामले में भी नितीन हिंगड ने अपनी असामान्यता का परिचय कराया है. सफल होने के पश्चात अपने वतन और अपने परिवारजनों के प्रति इनका प्यार और ज्यादा बढता हुआ नजर आया . नजदीकी और दूर के-सभी परिवारजनों और रिश्तेदारों के साथ अपने प्रेमभरे व्यवहार से इन्होंने सभी के दिलों में अपनी एक जगह कायम कर ली है.
 


स्वाती पारसजी जैन
रानी/ पूना निवासी शा बस्तीमलजी गुलाबचन्दजी मन्डलेचा की सुपौत्री स्वाती पारसजी जैन ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में न सिर्फ़ जैन समाज का, बल्कि समग्र राजस्थान का नाम रोशन किया है. 22 वर्षीय इस बालिका द्वारा लिखित एवम् युनिवर्सिटी पाठ्यक्रम के अनुसार स्वीकृत कर प्रकाशित की गई पाठ्यपुस्तकों (textbooks) की संख्या अब 6 तक पहुंच चुकी है.

शैक्षणिक वर्ष 2005-06 में पुणे एवम् मुम्बई युनिवर्सिटी के B.E.(कम्प्यूटर इन्जिनीयरिंग) व B.E.( आइ.टी.) तृतीय वर्ष के करीबन 5000 विद्यार्थी `सिस्टम प्रोग्रामिंग' एवम् `सिस्टम सॉफ्ट्वेयर' इन विषयों पर इनके द्वारा लिखी गई तीन पुस्तकों के माध्यम से अपनी पढाई पूरी कर परीक्षाएं दे चुके हैं.

दूसरी ओर पंजाब टेक्निकल युनिवर्सिटी तथा अण्णा युनिवर्सिटी, चेन्नई के लिये भी इनके दो ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं तथा पुणे युनिवर्सिटी B.E. (Computer) के चतुर्थ वर्ष के विद्यार्थियों हेतु इनकी नई पुस्तक `ऑपरेटिंग सिस्टम' अभी-अभी प्रकाशित हुई है. इस तरह शैक्षणिक वर्ष 2006-07 में इन्जिनीयरिंग के करीबन 10000 विद्यार्थी इनकी पुस्तकों से लाभान्वित होंगे.

इतनी कम उम्र में राजस्थान की एक बालिका द्वारा उच्च शिक्षा की 6 पाठ्यपुस्तकें लिखकर प्रकाशित करवाना एवम् मार्केट में किताबों का सफ़ल होना - यह एक ऐतिहासिक सिद्धि है. गुरु वल्लभ द्वारा जन-जन को शिक्षित करने का जो सपना देखा गया था , उसकी पूर्णता की दिशा में यह घटना एक `माइलस्टोन' साबित होगी.

यह पूछे जाने पर कि युवाओं के लिये आपका क्या सन्देश है? , स्वाती जैन ने बडी विनम्रता से बताया कि `मेरे हम उम्र युवाओं से मेरी यही अपील है कि जीवन में अपने ध्येय को हमेशा उंचा रखें, और उसे हासिल करने के लिये तन-मन से जुटे रहें, सफलता अवश्य आपके कदम चूमेगी. युवा शक्ति का समन्वय और संगठन किया जाय तो जैन समाज बहुत आगे बढ सकता है. जैन संस्कृति विश्व की अनमोल संस्कृति है , इसके अनुसार जीवन जीने से हमारा जीवन सर्वांगसुन्दर बन सकता है.'

 

 

 

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